सुपारी की खेती में आई बर्बादी, किसानों की चिंता बढ़ी, क्या होगी राहत?

सुपारी की खेती में आई बर्बादी, किसानों की चिंता बढ़ी, क्या होगी राहत?

दक्षिण कन्नड़ जिले में सुपारी की खेती करने वाले किसान इस साल एक गंभीर समस्या का सामना कर रहे हैं। सुपारी में फल सड़न रोग लगने से फसल के चौपट होने की संभावना बढ़ गई है, जिससे किसानों की चिंता और बढ़ गई है। पूरे जिले में 99,190.82 हेक्टेयर में सुपारी की खेती होती है, लेकिन इस बीमारी के कारण 40 प्रतिशत से अधिक फसल बर्बाद हो चुकी है।

बारिश का प्रभाव

इस वर्ष दक्षिण कन्नड़ में जनवरी से अब तक औसतन 4371.4 मिमी बारिश हुई है, जबकि सामान्य वर्षा 3783.9 मिमी होती है। अधिक बारिश ने बागानों में सड़न रोग के प्रकोप को बढ़ा दिया है। पिछले साल कम बारिश के कारण किसानों ने आसानी से फसल की देखभाल की, लेकिन इस साल की बारिश ने उन्हें परेशान कर दिया है। 2018 में भी लगभग 33,350 हेक्टेयर क्षेत्र में कोलेरोगा का प्रकोप हुआ था, जिसके बाद सरकार को 60 करोड़ रुपए के मुआवजे की मांग की गई थी।

फसल के नुकसान की स्थिति

किसान आमतौर पर मानसून की शुरुआत से पहले और बाद में जुलाई में बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करते हैं। लेकिन इस साल जुलाई और अगस्त में लगातार बारिश के कारण किसान इस आवश्यक प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सके। एक किसान ने कहा कि इस साल किसानों को भारी फसल नुकसान हुआ है, जिससे उनकी आय पर भी गंभीर असर पड़ा है।

बीमा योजना और राहत की मांग

बागवानी विभाग का दावा है कि सुपारी की फसल मौसम आधारित फसल बीमा योजना के तहत कवर की जाती है। हालांकि, किसान अब सरकार से प्राकृतिक आपदा राहत कोष के तहत मुआवजा जारी करने की अपील कर रहे हैं। पहले, किसानों की वार्षिक आय 6-7 लाख रुपए हुआ करती थी, लेकिन इस बार कम उपज के कारण यह राशि काफी कम हो गई है।

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निष्कर्ष

दक्षिण कन्नड़ जिले के सुपारी किसानों के लिए यह समय बेहद कठिन है। बर्बादी और रोग के चलते उनकी मेहनत और आय पर असर पड़ा है। सरकार की सहायता और राहत योजनाओं की आवश्यकता है ताकि किसान फिर से अपने पैरों पर खड़े हो सकें। इस गंभीर स्थिति में किसानों की सहायता करना समाज और सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।